Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail
वाक़िआ़ ख़लीफ़ा को सुनाया, तो वोह बहुत तअ़ज्जुब करने लगे और कहा : बेशक इ़ल्म ज़रूर फ़ाइदा देता और दीनो दुन्या में बुलन्दी दिलवाता है । (عیون الحکایات،الحکایۃ الثانیۃ عشرۃ بعد الثلاثمائۃ ،ص۲۷۸ ملخصاً )
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान कर्दा ह़िकायत से हमें 2 मदनी फूल मिले : (1) औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن, अल्लाह पाक की अ़त़ा से आइन्दा पेश आने वाले वाक़िआ़त को पहले ही जान लिया करते हैं । (2) इ़ल्मे दीन दुन्या व आख़िरत में काम्याबी व कामरानी का बाइ़स है, यहां तक कि बड़े बड़े दुन्यादारों को वोह मक़ामो मर्तबा नहीं मिलता जो इ़ल्म के शैदाइयों को ह़ासिल हो जाता है । लिहाज़ा हमें भी चाहिये कि इ़ल्मे दीन ख़ुद भी सीखें और अपनी औलाद की मदनी तरबिय्यत के लिये उन्हें भी दीन का इ़ल्म सिखाएं ।
याद रखिये ! मरने के बा'द नेक आ'माल के इ़लावा दीगर चीज़ें कुछ काम नहीं आएंगी, येह मालो दौलत, बैंक बेलन्स, आ़लीशान बंगले, दुन्यवी मक़ामो मर्तबा सब यहीं रह जाएगा, क़ब्र में इन में से कुछ भी साथ न जाएगा । नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : जब इन्सान फ़ौत हो जाता है, तो उस के आ'माल का सिलसिला ख़त्म हो जाता है, सिवाए तीन आ'माल के : (1) सदक़ए जारिया (2) ऐसा इ़ल्म जिस से फ़ाइदा उठाया जाए और (3) नेक औलाद जो उस के लिये दुआ़ करती है । (مسلم،کتاب الوصیة،باب ما یلحق الانسان من الثواب بعد وفاته، ص ۸۸۶، حدیث:۱۶۳۱)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! मा'लूम हुवा ! सदक़ए जारिया, इ़ल्मे दीन को फैलाना और नेक औलाद ऐसे आ'माल हैं कि मरने के बा'द भी इन का सवाब पहुंचता रहता है, लिहाज़ा अपने बच्चों को दीनी ता'लीम दिलवाने के लिये कमर बस्ता हो जाइये और उन्हें जामिअ़तुल मदीना में दाख़िल करवाइये । फ़ी ज़माना बुराइयों में सब से बड़ी बुराई जहालत है जो मुआ़शरे की दीगर बुराइयों में सरे फे़हरिस्त है । घर बार का मुआ़मला हो, निकाह़ का हो या औलाद की अच्छी तरबिय्यत का, ग़रज़ ! क्या अल्लाह पाक के ह़ुक़ूक़ और क्या बन्दों के ह़ुक़ूक़ ? ज़िन्दगी के हर शो'बे में जहां भी जिस अन्दाज़ से भी ख़राबियां पाई जा रही हैं, अगर हम सन्जीदगी से इस के बारे में ग़ौर करें, तो येह बात हम पर वाज़ेह़ हो जाएगी कि इस का बुन्यादी सबब इ़ल्मे दीन से दूरी है । इ़ल्मे दीन न होने और दुरुस्त रहनुमाई से मह़रूमी के बाइ़स न सिर्फ़ मुआ़मलात व अख़्लाक़िय्यात बल्कि अ़क़ाइद व इ़बादात तक में त़रह़ त़रह़ की बुराइयां और ख़राबियां निहायत तेज़ी के साथ बढ़ती जा रही हैं जिन को रोकने के लिये सिर्फ़ इ़ल्मे दीन ह़ासिल कर लेना ही काफ़ी नहीं बल्कि अपने इ़ल्म पर अ़मल करना और इस के ज़रीए़ दूसरी इस्लामी बहनों की इस्लाह़ की कोशिश करना भी ज़रूरी है ।