Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना के रिसाले "इ़ल्मो ह़िक्मत के 125 मदनी फूल" के सफ़ह़ा नम्बर 11 पर लिखा है : ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا फ़रमाते हैं : रसूले करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ाहिरी वफ़ात के वक़्त मैं कम उ़म्र था । अपने एक हम उ़म्र अन्सारी लड़के से मैं ने कहा : चलो ! अस्ह़ाबे रसूल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ اَجْمَعِیْن से इ़ल्म ह़ासिल कर लें क्यूंकि अभी वोह बहुत हैं । अन्सारी ने जवाब दिया : इबने अ़ब्बास (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ) ! तुम भी अ़जीब आदमी हो ! इतने अस्ह़ाब (عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان) की मौजूदगी में लोगों को भला तुम्हारी क्या ज़रूरत पड़ेगी ! इस पर मैं ने अन्सारी लड़के को छोड़ दिया और ख़ुद इ़ल्म ह़ासिल करने लग गया । कई मरतबा ऐसा हुवा कि मा'लूम होता फ़ुलां सह़ाबी के पास फ़ुलां ह़दीस है, तो मैं उस के घर दौड़ा जाता, अगर वोह आराम कर रहे होते, तो मैं अपनी चादर का तक्या बना कर उन के दरवाज़े पर पड़ा रहता और गर्म हवा मेरे चेहरे को जलाती रहती । जब वोह सह़ाबी बाहर आते और मुझे इस ह़ाल में पाते, तो मुतअस्सिर हो कर कहते : रसूले अन्वर, बेकसों के यावर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के चचा के बेटे ! आप क्या चाहते हैं ? मैं कहता : सुना है आप, सरवरे ज़ीशान, मह़बूबे रह़मान صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की फ़ुलां ह़दीस रिवायत करते हैं, उसी की त़लब में ह़ाज़िर हुवा हूं । वोह कहते : आप ने किसी को भेज दिया होता और मैं ख़ुद चला आता । मैं जवाब देता : नहीं ! इस काम के लिये ख़ुद मुझे ही आना चाहिये था । इस के बा'द येह हुवा कि जब अस्ह़ाबे रसूल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ اَجْمَعِیْن विसाल कर गए, तो वोही अन्सारी देखता कि लोगों को मेरी कैसी ज़रूरत है और ह़सरत से कहता : इबने अ़ब्बास (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ) ! तुम मुझ से ज़ियादा अ़क़्लमन्द थे । (سنن دارمي،۱/۱۵۰،حدیث:۵۷۰)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इ़ल्मे दीन के फ़ज़ाइल की तो क्या ही बात है कि क़ुरआने करीम में कई मक़ामात पर इ़ल्म और उ़लमा के फ़ज़ाइल बयान हुवे हैं । चुनान्चे, पारह 3, सूरए आले इ़मरान की आयत नम्बर 18 में इरशाद होता है :
شَهِدَ اللّٰهُ اَنَّهٗ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۙ-وَ الْمَلٰٓىٕكَةُ وَ اُولُوا الْعِلْمِ قَآىٕمًۢا بِالْقِسْطِؕ (پ۳،اٰل عمرٰن:۱۸)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अल्लाह ने गवाही दी कि उस के सिवा कोई मा'बूद नहीं और फ़िरिश्तों ने और आ़लिमों ने इन्साफ़ से क़ाइम हो कर ।
आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के वालिदे मोह़्तरम, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती नक़ी अ़ली ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : आयते करीमा से इ़ल्म की तीन फ़ज़ीलतें साबित होती हैं : पहली येह कि अल्लाह पाक ने उ़लमा का ज़िक्र अपने और फ़िरिश्तों के साथ फ़रमाया है । दूसरी येह कि उ़लमा को भी फ़िरिश्तों की त़रह़ अपनी वह़दानिय्यत (या'नी एक होने) का गवाह बनाया और उन की गवाही को भी अपने मा'बूदे बरह़क़ (ह़क़ीक़ी मा'बूद) होने की दलील क़रार