Janwaron Par Zulm Karna Haram He

Book Name:Janwaron Par Zulm Karna Haram He

क़ुरबानी वाजिब है और उस वक़्त उस के पास रुपये नहीं हैं, तो क़र्ज़ ले कर या कोई चीज़ फ़रोख़्त कर के क़ुरबानी करे । (फ़तावा अमजदिय्या, 3 / 315, मुलख़्ख़सन) ٭ ना बालिग़ की त़रफ़ से अगर्चे वाजिब नहीं मगर कर देना बेहतर है (और इजाज़त भी ज़रूरी नहीं) । (अब्लक़ घोड़े सुवार, स. 9) ٭ क़ुरबानी के जानवर की उ़म्र : ऊंट पांच साल का, बकरा (इस में बकरी, दुम्बा, दुम्बी और भेड़ नर व मादा दोनों शामिल हैं) एक साल का, इस से कम उ़म्र हो, तो क़ुरबानी जाइज़ नहीं, ज़ियादा हो, तो जाइज़ बल्कि अफ़्ज़ल है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 340, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ क़ुरबानी का जानवर बे ऐ़ब होना ज़रूरी है, अगर थोड़ा सा ऐ़ब हो (मसलन कान में चीरा या सूराख़ हो), तो क़ुरबानी मक्रूह होगी और ज़ियादा ऐ़ब हो, तो क़ुरबानी नहीं होगी । (बहारे शरीअ़त, 3 / 340, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد