Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail
आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ भी बचपन ही से इ़ल्मे दीन सीखते रहे यहां तक कि साढ़े चार साल की नन्ही सी उ़म्र में क़ुरआने करीम नाज़िरा मुकम्मल पढ़ने की ने'मत से फै़ज़याब हुवे और सिर्फ़ तेरह साल, दस माह, चार दिन की उ़म्र में तमाम राइज शुदा उ़लूम अपने वालिदे माजिद, ह़ज़रते मौलाना नक़ी अ़ली ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से ह़ासिल कर के सनदे फ़राग़त ह़ासिल कर ली । (फै़ज़ाने आ'ला ह़ज़रत, स. 85, 91)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान कर्दा वाक़िआ़त से मा'लूम हुवा ! हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن अपनी औलाद को बचपन ही से इ़ल्मे दीन सिखाने में मश्ग़ूल कर दिया करते थे । हमें भी अपनी औलाद की मदनी तरबिय्यत करते हुवे उन्हें इ़ल्मे दीन सिखाने की कोशिश करनी चाहिये । अपनी औलाद की सुन्नतों के मुत़ाबिक़ तरबिय्यत करना इस लिये भी बहुत ज़रूरी है ताकि उन्हें नेक बना कर उस दोज़ख़ से बचाया जा सके जिस का ईंधन आदमी और पथ्थर हैं । अल्लाह करीम पारह 28, सूरतुत्तह़रीम की आयत नम्बर 6 में इरशाद फ़रमाता है :
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِیْكُمْ نَارًا وَّ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ عَلَیْهَا مَلٰٓىٕكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا یَعْصُوْنَ اللّٰهَ مَاۤ اَمَرَهُمْ وَ یَفْعَلُوْنَ مَا یُؤْمَرُوْنَ(۶)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ ईमान वालो ! अपनी जानों और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिस के ईंधन आदमी और पथ्थर हैं, उस पर सख़्ती करने वाले त़ाक़त वर फ़िरिश्ते मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के ह़ुक्म की ना फ़रमानी नहीं करते और वोही करते हैं जो उन्हें ह़ुक्म दिया जाता है ।
सदरुल अफ़ाज़िल, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ "ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान" में आयते मुबारका के इस ह़िस्से (یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِیْكُمْ نَارًا) के तह़त फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की फ़रमां बरदारी इख़्तियार कर के, इ़बादतें बजा ला कर, गुनाहों से बाज़ रह कर और घर वालों को नेकी की हिदायत और बदी (बुराई) से मुमानअ़त (मन्अ़) कर के उन्हें इ़ल्म व अदब सिखा कर (अपने आप को और अपने घर वालों को आग से बचाओ !)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! वालिदैन को चाहिये कि अपनी ज़िम्मेदारी का एह़सास करते हुवे अपनी औलाद की मदनी तरबिय्यत का ख़याल रखें, उन्हें नमाज़, रोज़े का पाबन्द बनाएं और फ़राइज़ व वाजिबात, ह़लाल व ह़राम और बन्दों के ह़ुक़ूक़ वग़ैरा के शरई़ अह़कामात से भी उन्हें आग़ाह करने का इन्तिज़ाम करें । इस का बेहतरीन ज़रीआ़ येह है कि अपने बच्चों को इ़ल्मे दीन सिखाने के लिये दर्से निज़ामी (या'नी आ़लिम कोर्स) करवा दिया जाए ताकि हमारे बच्चे इ़ल्मे दीन सीख कर दूसरों को सिखाएं और हमारी उख़रवी नजात का सामान बन सकें ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस मक़्सद की तक्मील के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के जामिआ़तुल मदीना क़ाइम हैं । जामिआ़तुल मदीना में त़लबा व त़ालिबात को नूरे इ़ल्म से मुनव्वर करने के साथ साथ तक़्वा व परहेज़गारी के अन्वार से दिलों को रौशन करने के लिये अख़्लाक़ी तरबिय्यत भी की जाती है । अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा