Janwaron Par Zulm Karna Haram He

Book Name:Janwaron Par Zulm Karna Haram He

की गुन्जाइश हो फिर भी वोह क़ुरबानी न करे, तो वोह हमारी ई़दगाह के क़रीब न आए । (اِبن ماجہ،کتاب الاضاحی،باب  الاضاحی واجبۃ ام لا،۳/ ۵۲۹،حدیث:۳۱۲۳) ٭ हर बालिग़, मुक़ीम, मुसलमान मर्द व औ़रत, मालिके निसाब पर क़ुरबानी वाजिब है । (फ़तावा हिन्दिया, 5 / 292) ٭ अगर किसी पर क़ुरबानी वाजिब है और उस वक़्त उस के पास रुपये नहीं हैं, तो क़र्ज़ ले कर या कोई चीज़ फ़रोख़्त कर के क़ुरबानी करे । (फ़तावा अमजदिय्या, 3 / 315, मुलख़्ख़सन) ٭ क़ुरबानी का जानवर अपने हाथ से ज़ब्ह़ करना अफ़्ज़ल और ज़ब्ह़ के वक़्त सवाब की निय्यत से वहां ह़ाज़िर रहना भी अफ़्ज़ल है । (अब्लक़ घोड़े सुवार, स. 17) ٭ ना बालिग़ की त़रफ़ से अगर्चे वाजिब नहीं मगर कर देना बेहतर है (और इजाज़त भी ज़रूरी नहीं) । (अब्लक़ घोड़े सुवार, स. 9) ٭ बालिग़ औलाद या ज़ौजा की त़रफ़ से क़ुरबानी करना चाहे, तो उन से इजाज़त त़लब करे, अगर उन से इजाज़त लिये बिग़ैर कर दी, तो उन की त़रफ़ से वाजिब अदा नहीं होगा । (बहारे शरीअ़त, 3 / 334, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ क़ुरबानी के जानवर की उ़म्र : ऊंट पांच साल का, बकरा (इस में बकरी, दुम्बा, दुम्बी और भेड़ नर व मादा दोनों शामिल हैं) एक साल का, इस से कम उ़म्र हो, तो क़ुरबानी जाइज़ नहीं, ज़ियादा हो, तो जाइज़ बल्कि अफ़्ज़ल है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 340, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ क़ुरबानी का जानवर बे ऐ़ब होना ज़रूरी है, अगर थोड़ा सा ऐ़ब हो (मसलन कान में चीरा या सूराख़ हो), तो क़ुरबानी मक्रूह होगी और ज़ियादा ऐ़ब हो, तो क़ुरबानी नहीं होगी । (बहारे शरीअ़त, 3 / 340, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ क़ुरबानी से पहले उसे चारा, पानी दे दें, एक के सामने दूसरे को ज़ब्ह़ न करें और पहले से छुरी तेज़ कर लें । ٭ जानवर गिराने के बा'द उस के सामने छुरी तेज़ न की जाए । (बहारे शरीअ़त, 3 / 352, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ सुन्नत येह चली आ रही है कि ज़ब्ह़ करने वाला और जानवर दोनों क़िब्ला रू (क़िब्ले की त़रफ़) हों । (फ़तावा रज़विय्या, 20 / 216) ٭ बेहतर येह है कि अपनी क़ुरबानी अपने हाथ से करे जब कि अच्छी त़रह़ ज़ब्ह़ करना जानता हो । (बहारे शरीअ़त, 3 / 344, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ अगर अच्छी त़रह़ न जानता हो, तो दूसरे को ज़ब्ह़ करने का ह़ुक्म दे मगर इस सूरत में बेहतर येह है कि क़ुरबानी के वक़्त वहां ह़ाज़िर हो । (बहारे शरीअ़त, 3 / 344, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ दूसरे से ज़ब्ह़ करवाया और ख़ुद अपना हाथ भी छुरी पर रख दिया कि दोनों ने मिल कर ज़ब्ह़ किया, तो दोनों पर बिस्मिल्लाह कहना वाजिब है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 351, ह़िस्सा : 15) ٭ क़ुरबानी का गोश्त ख़ुद भी खा सकता है और दूसरे शख़्स ग़नी (या'नी मालदार) या फ़क़ीर को दे सकता है, खिला सकता है बल्कि उस में से कुछ खा लेना क़ुरबानी करने वाले के लिये मुस्तह़ब है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 345, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ अगर शिर्कत में बडे़ जानवर की क़ुरबानी की, तो ज़रूरी है कि गोश्त वज़्न कर के तक़्सीम किया जाए, अन्दाज़े से तक़्सीम करना जाइज़ नहीं । (बहारे शरीअ़त, 3 / 335, ह़िस्सा : 15, मुलख़्ख़सन) ٭ तीन ह़िस्से करना सिर्फ़ इस्तिह़्बाबी अम्र (मुस्तह़ब) है, कुछ ज़रूरी नहीं, चाहे तो सब अपने सर्फ़ (या'नी इस्ति'माल) में कर ले या सब अ़ज़ीज़ों, क़रीबों (रिश्तेदारों) को दे दे या सब मसाकीन को बांट दे । (फ़तावा रज़विय्या, 20 / 253) ٭ मन्नत या मर्हू़म की वसिय्यत पर की जाने