Book Name:Janwaron Par Zulm Karna Haram He
क़ुरबानी की ता'रीफ़
सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आ'ज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मख़्सूस जानवर को मख़्सूस दिन में ब निय्यते सवाब (सवाब की निय्यत से) ज़ब्ह़ करना "क़ुरबानी" कहलाता है । (बहारे शरीअ़त, 3 / 327)
चूंकि क़ुरबानी के इस फ़रीज़े से ह़ज़रते इस्माई़ल عَلَیْہِ السَّلَام और ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام की अल्लाह पाक के ह़ुक्म पर अ़मल करने की याद ताज़ा होती है कि ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام, अल्लाह पाक के ह़ुक्म पर अ़मल करते हुवे बेटे की क़ुरबानी के लिये तय्यार हुवे और ह़ज़रते इस्माई़ल عَلَیْہِ السَّلَام भी ह़ुक्मे इलाही पर अ़मल का मुज़ाहरा करते हुवे क़ुरबान होने के लिये राज़ी हो गए । जो लोग सुन्नते इब्राहीमी पर अ़मल करते हुवे अपनी त़ाक़त के मुत़ाबिक़ क़ुरबानी करते हैं, वोह बारगाहे इलाही से बहुत बड़े सवाब के ह़क़दार क़रार पाते हैं । आइये ! क़ुरबानी के फ़ज़ाइल पर मुश्तमिल 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनते हैं । चुनान्चे,
1. इरशाद फ़रमाया : क़ुरबानी करने वाले को क़ुरबानी के जानवर के हर बाल के बदले में एक नेकी मिलती है । (تِرمِذی، کتاب الاضاحی ،باب ماجاء فی فضل الاضحیۃ ، ۳/۱۶۲،حدیث: ۱۴۹۸)
2. इरशाद फ़रमाया : जिस ने ख़ुश दिली से, सवाब की निय्यत से क़ुरबानी की, तो वोह क़ुरबानी दोज़ख़ की आग और उस के दरमियान रुकावट होगी । (مُعْجَم کبِیر، ۳/۸۴ ،حدیث: ۲۷۳۶ملخصاً)
3. इरशाद फ़रमाया : इन्सान बक़रह ई़द के दिन कोई ऐसी नेकी नहीं करता जो अल्लाह पाक को (जानवर का) ख़ून बहाने से ज़ियादा प्यारी हो । येह क़ुरबानी क़ियामत में अपने सींगों, बालों और खुरों के साथ आएगी और क़ुरबानी का ख़ून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह पाक के हां क़बूल हो जाता है, लिहाज़ा ख़ुश दिली से क़ुरबानी करो । (تِرمِذی،۳/۱۶۲،حدیث: ۱۴۹۸)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जो लोग क़ुरबानी की त़ाक़त रखने के बा वुजूद अपनी वाजिब क़ुरबानी अदा नहीं करते, उन के लिये लम्ह़ए फ़िक्रिय्या है, येही नुक़्सान क्या कम था कि क़ुरबानी न करने से इतने बड़े सवाब से मह़रूम हो गए, मज़ीद येह कि गुनहगार भी हुवे । "फ़तावा अमजदिय्या" जिल्द 3, सफ़ह़ा नम्बर 315 पर लिखा है : अगर किसी पर क़ुरबानी वाजिब है और उस वक़्त उस के पास रुपये नहीं हैं, तो क़र्ज़ (Loan) ले कर या कोई चीज़ फ़रोख़्त कर के क़ुरबानी करे । (फ़तावा अमजदिय्या, 3 / 315)
अल्लाह करीम हमें क़ुरबानी जैसे अ़ज़ीम फ़रीज़े की अदाएगी करने की तौफ़ीक़ नसीब फ़रमाए और सारी ज़िन्दगी रब्बे करीम की फ़रमां बरदारी में गुज़ारने की सआ़दत नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد