Janwaron Par Zulm Karna Haram He

Book Name:Janwaron Par Zulm Karna Haram He

करीम की बारगाह में ख़ालिस इ़बादत पेश कर जिस में रिया (दिखलावा) वग़ैरा की बिल्कुल भी मिलावट न हो । (नूरुल इ़रफ़ान, अन्नह़ल, तह़तुल आयत : 66, स. 437, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जानवरों पर सुवार होने या सामान रखते वक़्त भी उन की त़ाक़त के मुत़ाबिक़ ही वज़्न डाला जाए जिसे वोह आसानी से उठा सकें, ऐसा न हो कि वज़्न की वज्ह से बेचारे जानवर को चलने में शदीद दुशवारी हो और हम मुत़्मइन रहें कि वज़्न उठा कर चल तो रहा है, आराम देने के लिये किसी मुनासिब मक़ाम पर रोक लेंगे । कुछ देर बा'द हम अपनी सोच के मुत़ाबिक़ जानवर को आराम पहुंचाने के लिये रोक तो देते हैं मगर उस पर रखा हुवा सामान तो वैसे का वैसा रखा हुवा है, जिस की वज्ह से बेचारे जानवर को खड़ा रहने में शदीद तक्लीफ़ होती होगी । याद रखिये ! जानवरों पर ज़ुल्म करना ह़राम और दोज़ख़ में ले जाने वाला काम है । अह़ादीसे करीमा में उन पर बिग़ैर ज़रूरत सुवार होने से भी मन्अ़ किया गया है । चुनान्चे,

जानवरों को कुर्सी न बना लो

        नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : इन जानवरों पर अच्छी त़रह़ सुवारी करो और (जब ज़रूरत न हो तो) इन से उतर जाओ, रास्तों और बाज़ारों में गुफ़्तगू करने के लिये इन्हें कुर्सी न बना लो क्यूंकि कई सुवारी के जानवर अपने सुवार से बेहतर और उस से ज़ियादा अल्लाह पाक का ज़िक्र करने वाले होते हैं । (جامع الاحادیث،۱/۴۰۴، حدیث: ۲۷۶۵)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा ह़दीसे करीमा से मा'लूम हुवा ! जानवरों को जिस मक़्सद के लिये पैदा किया गया है उन्हें उसी काम के लिये इस्ति'माल करना चाहिये । अल्लाह पाक हमारे दिलों को नर्म फ़रमाए, बे ज़बानों पर ज़ुल्मो सितम करने से मह़फ़ूज़ फ़रमाए और जिन मक़ासिद के लिये उन जानवरों को हमारे लिये बनाया गया है, उन्ही कामों में उन का इस्ति'माल करने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । याद रखिये ! जानवरों पर ज़ुल्म करने की वज्ह से आख़िरत में इस का बदला भी देना पड़ेगा । चुनान्चे,

गधे की नसीह़त

          ह़ज़रते अबू सुलैमान दारानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : एक दफ़्आ़ मैं गधे पर सुवार था, मैं ने उसे दो, तीन मरतबा मारा, तो उस ने अपना सर उठा कर मेरी त़रफ़ देखा और कहने लगा : ऐ अबू सुलैमान ! क़ियामत के दिन इस मारने का बदला लिया जाएगा, अब तुम्हारी मर्ज़ी है, कम मारो या ज़ियादा । तो मैं ने कहा : अब मैं किसी को भी नहीं मारूंगा । (الزواجر عن اقتراف الکبائر،۲/۱۷۴)

        प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! क़ुरबानी के मौक़अ़ पर जानवर ज़ब्ह़ करना बड़ी सआ़दत की बात है मगर याद रखिये ! क़ुरबानी से पहले या ज़ब्ह़ करते वक़्त जानवर पर