Book Name:Baap Kay Huqooq
साथ इस अ़ज़ीमुश्शान काम को मज़ीद आगे बढ़ाने की सआ़दत नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक ने अगर्चे वालिद का ह़क़ वलद (औलाद) पर निहायत आज़म बताया यहां, तक कि अपने ह़क़ के बराबर उस का ज़िक्र फ़रमाया कि(اَنِ اشْکُرْ لِیۡ وَ لِوٰلِدَیۡکَط (پ۲۱،لقمن:۱۴ (ह़क़ मान मेरा और अपने मां-बाप का) मगर वलद (औलाद) का ह़क़ भी वालिद पर अ़ज़ीम रखा है कि वलद मुत़्लक़ इस्लाम, फिर ख़ुसूसे जवार, फिर ख़ुसूसे क़राबत, फिर ख़ुसूसे इ़याल, इन सब ह़ुक़ूक़ का जामेअ़ हो कर सब से ज़ियादा ख़ुसूसिय्यते ख़ास्सा रखता है और जिस क़दर ख़ुसूस बढ़ाता जाता है, ह़क़ अशद्द व आकद (यानी बहुत मज़बूत़) होता जाता है । (फ़तावा रज़विय्या, 24 / 451)
आला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से पूछा गया : क्या फ़रमाते हैं उ़लमाए दीन इस मस्अले में कि ज़ैद का वालिद एक अ़र्से से आमा (नाबीना) हो गया है, दोनों ख़य्यात़ी (दरज़ी का काम) करते हैं और अ़दद फ़रोख़्त के वासित़े तय्यार करते हैं, वालिदे ज़ैद फ़रोख़्ते माल के लिए बाज़ार को दो चार घन्टे को जाया करता है कि क़दीम से उस की आ़दत है, शरअ़न इस में ज़ैद पर तो कोई इल्ज़ाम नहीं ? बाप का माल बेटे को खाना ह़राम है या ह़लाल ? दोनों की ख़ोरिश (ख़ूराक) यक्जाई (इकठ्ठी) है । बाप का ह़क़ बेटे पर कब रेहता है ? और बेटे का बाप पर कब तक ?
आला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने फ़रमाया : अगर ज़ैद का बाप अपनी ख़ुशी से ह़स्बे आ़दत जाता है, तो ज़ैद पर इल्ज़ाम नहीं, अगर्चे मुक़्तज़ाए सआ़दतमन्दी (सआ़दतमन्दी का तक़ाज़ा) येह है कि उसे आराम दे और ख़ुद काम करे, हां ! अगर ज़ैद उसे मजबूर करता है, तो ज़रूर गुनहगार व ना लाइक़ है । बाप का माल बेटे को उस की रिज़ा से क़दरे रिज़ा तक ह़लाल है, वरना ह़राम । शरीक हों, ख़्वाह जुदा, बाप का ह़क़ बेटे पर हमेशा रेहता है, यूंही बेटे का बाप पर, हां ! बाज़ ह़ुक़ूक़ वक़्त तक मह़दूद हैं, जैसे लड़का जब जवान हो जाए, (तो) बाप पर उस का नफ़्क़ा वाजिब नहीं रेहता । (फ़तावा रज़विय्या, 23 / 545)
रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم फ़रमाते हैं : ज़ियादा एह़सान करने वाला वोह है जो अपने बाप के दोस्तों के साथ बाप के न होने (यानी बाप के इन्तिक़ाल कर जाने या कहीं चले जाने) की सूरत में एह़सान करे । (مسلم،کتاب البرّ والصلة والآداب،باب فضل صلة اصدقاء الاب والامّ ونحوھما،ص۱۰۶۱،حدیث:۶۵۱۵) यानी जब बाप मर गया या कहीं चला गया हो ।(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, 3 / 551) दूसरी ह़दीस में है, रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने मां-बाप के साथ नेकूकारी के त़रीक़ों में येह भी शुमार फ़रमाया : وَاِکْرَامُ صَدِیْقِھِمَا उन के दोस्त की इ़ज़्ज़त करना । (ابوداود،کتاب الادب،باب فی برّ الو الدین،۴/۴۳۴،حدیث: ۵۱۴۲)
आला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से पूछा गया : पिसर (बेटे) ने अपने बाप की ना फ़रमानी इख़्तियार कर के कुल जाएदादे पिदर (बाप की तमाम जाएदाद) पर क़ब्ज़ा कर लिया और बाप के