Book Name:Baap Kay Huqooq
बाप के साथ ह़ुस्ने सुलूक से पेश आना चाहिए, वरना क़ियामत का दिन तो दूर की बात है, मां-बाप के ना फ़रमान को दुन्या ही में सज़ा दे दी जाती है ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ मुआ़शरे में ऐसे क़ाबिले तेह़सीन बच्चे भी हैं जो मां-बाप में अ़लाह़िदगी होने के बाद फ़साद से बचने के लिए मां से छुप छुप कर बाप की माली मदद करते और इ़लाज मुआ़लजे के अख़राजात उठाते हैं । मां को भी चाहिए कि अगर त़लाक़ वग़ैरा हो जाए, तो दिल बड़ा रखे और औलाद को बाप की ना फ़रमानी के गुनाह पर न उभारे बल्कि हो सके, तो औलाद को येह समझाए कि मेरे और तुम्हारे वालिद के दरमियान जो कुछ हुवा, उस से सर्फ़े नज़र करो और मेरी भी ख़िदमत करो और अपने बाप का भी ख़याल रखो । (क़िस्त़ : 11, मां-बाप लड़ें, तो औलाद क्या करे ? स. 24, 25)
मां बाप लड़ें, तो औलाद क्या करे ?
अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ से अ़र्ज़ की गई : बाप अगर बच्चों के सामने उन की मां को मारे, तो ऐसी सूरत में औलाद को क्या करना चाहिए ? इरशाद फ़रमाया : बाप अगर बच्चों के सामने उन की मां को मारे, तो उन्हें सब्र करना चाहिए नीज़ ऐसी सूरत में बच्चों को चाहिए कि बाप का गिरेबान पकड़ कर मार धाड़ करने के बजाए ह़िक्मते अ़मली और नर्मी से मां-बाप में सुल्ह़ करवाएं और रिश्तेदारों को बीच में डाल कर मां को ज़ुल्म से बचाएं । इस के साथ साथ मां को बाप की मार से बचाने के लिए जाइज़ त़रीके़ भी अपनाएं, मसलन बाप जब मां को मारने लगे, तो बीच में आड़े आ जाएं या बाप को पकड़ लें और कहें कि हम आप को मारने नहीं देंगे वग़ैरा । याद रखिए ! बच्चे जाइज़ त़रीक़ों से अपनी मां को बाप के ज़ुल्म से बचा सकते हैं मगर उन्हें अपने बाप को इस त़रह़ की धमकियां देने की हरगिज़ इजाज़त नहीं कि अगर हमारी मां को मारा, तो सर फोड़ देंगे और छोड़ेंगे नहीं वग़ैरा वग़ैरा । (क़िस्त़ : 11, मां-बाप लड़ें, तो औलाद क्या करे ? स. 26)
अगर वालिद मिलना जुलना छोड़ दे, तो औलाद क्या करे ?
अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ से अ़र्ज़ की गई : अगर वालिद साह़िब दूसरी शादी कर लें और पेहली ज़ौजा की औलाद से मिलना जुलना छोड़ दें, तो ऐसी सूरत में औलाद क्या करे ? इरशाद फ़रमाया : ऐसी सूरत में पेहली ज़ौजा की औलाद सब्र करे और अपने वालिद साह़िब से मिलने जुलने की कोशिश करे, अगर औलाद अपने वालिद साह़िब की ख़िदमत करेगी, तो वोह भी ज़रूर उन से मेल जोल रखेंगे । जो औलाद येह केहती है कि बाप हम से मिलता जुलता नहीं, इस लिए हम भी अपने बाप से मेल जोल नहीं रखेंगे । अगर बाप दुन्या से चला जाए, तो येही औलाद विरासत का माल ह़ासिल करने के लिए दौड़ पड़ेगी और ख़्वाब में भी बाप का छोड़ा हुवा माल लेने से इन्कार नहीं करेगी । अगर औलाद अमीर और बाप ग़रीब हो, तब भी औलाद को अल्लाह पाक की रिज़ा और ह़ुसूले जन्नत के लिए अपने बाप की ख़िदमत करनी चाहिए । (क़िस्त़ : 11, मां-बाप लड़ें, तो औलाद क्या करे ? स. 27)