Baap Kay Huqooq

Book Name:Baap Kay Huqooq

ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मत़लब येह है कि बेटा अपने बाप की कितनी ही ख़िदमत करे मगर उस का ह़क़ अदा नहीं कर सकता । (मिरआतुल मनाजीह़, 5 / 187)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

किश्ती बनाने वाला कैसे हलाक हुवा ?

          किसी शहर में लक्ड़ी का काम करने वाला रेहता था, उसे रोज़ाना एक दिरहम मिलता था, आधा दिरहम अपने बूढ़े वालिद, बीवी और बच्चे बच्ची पर ख़र्च करता और आधा दिरहम संभाल कर रख लेता । अ़र्सए दराज़ तक इसी त़रह़ काम काज कर के अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारता रहा । एक दिन उस ने अपनी जम्अ़ कर्दा रक़म शुमार की, तो वोह 100 दीनार से कुछ ज़ाइद थी । उस ने कहा : मैं तो अपने इस काम के बाद भी ख़सारे में रहा, अगर मैं किश्ती बनाता और समुन्दरी तिजारत करता, तो आज ख़ूब मालदार होता । जब उस ने अपना इरादा अपने वालिद पर ज़ाहिर किया, तो उन्हों ने कहा : ऐ मेरे बेटे ! येह काम न करो क्यूंकि मुझे एक नुजूमी ने तेरी पैदाइश से पेहले बताया था कि तू समुन्दर में डूब कर मरेगा । (याद रहे ! बाप ने बेटे की मह़ब्बत में नुजूमी के केहने पर बेटे को समुन्दरी तिजारत से रोका होगा, येह भी मुमकिन है कि नुजूमी ने पेहले से किश्तियां और किश्तियों में मौजूद लोगों के डूबने के मनाज़िर अपनी आंखों से देखे होंगे, इसी वज्ह से बाप ने नुजूमी की बात मान कर अपने बेटे को समुन्दरी तिजारत से रोका होगा, वरना समझदार मुसलमान कभी भी नुजूमियों की बातों का एतिबार बिल्कुल भी नहीं करते क्यूंकि शरअ़न नुजूमियों का क़ौल ना मक़्बूल व ग़ैर मोतबर है और उस पर भरोसा नहीं कर सकते । ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم, सह़ाबए किराम व ताबेई़न رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ اَجْمَعِیْن और सलफ़ व ख़लफ़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ने इस पर अ़मल नहीं किया और न ही एतिबार फ़रमाया । (اشعة اللمعات ،کتاب الصوم ،باب رؤیةالھلال،الفصل الاول،۲/۸) बेटे ने कहा : क्या उस ने येह भी बताया था कि मुझे माल मिलेगा ? बाप ने कहा : क्यूं नहीं ! इसी लिए तो मैं ने तुझे तिजारत करने से मन्अ़ किया था और तेरे लिए ऐसा काम तलाश किया था जिसे तू रोज़ाना करे । बेटे ने कहा : पेशनगोई करने वाले के केहने के मुत़ाबिक़ अगर मुझे माल मिलेगा, तो येह उसी सूरत में मुमकिन है जब मैं समुन्दरी तिजारत करूं । बाप ने कहा : मेरे बेटे ! ऐसा मत कर ! मुझे ख़ौफ़ है कि तू हलाक हो जाएगा । बेटे ने कहा : मुझे माल ज़रूर ह़ासिल होगा और अगर मैं ख़ैर ख़ैरिय्यत से ज़िन्दा रहा, तो दौलत पा लूंगा, अलबत्ता अगर मर गया, तो अपनी औलाद के लिए बेहतर चीज़ छोड़ जाऊंगा । बाप ने कहा : ऐ मेरे बेटे ! औलाद की वज्ह से अपनी जान हलाकत में न डाल । बेटे ने कहा : अल्लाह पाक की क़सम ! मैं अपनी राए हरगिज़ तब्दील न करूंगा । चुनान्चे, बेटे ने किश्ती तय्यार कर के उसे सजाया फिर उस में मुख़्तलिफ़ सामाने तिजारत रख कर एक साल के लिए सफ़र पर रवाना हो गया । साल बाद जब वोह वापस आया, तो उस के पास 100 क़न्त़ार (तक़रीबन सवा सेर) सोने जितनी रक़म मौजूद थी । बेटे को देख कर बाप ने अल्लाह पाक का शुक्र अदा किया और उस के लाए हुवे ख़ज़ाने की तारीफ़ करते हुवे कहा : ऐ मेरे बेटे ! मैं ने बारगाहे इलाही में नज़्र मानी