Baap Kay Huqooq

Book Name:Baap Kay Huqooq

अपने वालिद की ख़िदमत करें और उन का अदबो एह़तिराम कर के जन्नत के ह़क़दार बनें । (माहनामा फै़ज़ाने मदीना, फ़रवरी 2018, स. 1, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!        صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! याद रखिए ! मां-बाप से अच्छा सुलूक करने का ह़ुक्म क़ुरआने करीम व अह़ादीसे करीमा में बयान हुवा है । चुनान्चे, पारह 15, सूरए बनी इसराईल की आयत नम्बर 23 और 24 में अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :

وَ قَضٰى رَبُّكَ اَلَّا تَعْبُدُوْۤا اِلَّاۤ اِیَّاهُ وَ بِالْوَالِدَیْنِ اِحْسَانًاؕ-اِمَّا یَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ اَحَدُهُمَاۤ اَوْ كِلٰهُمَا فَلَا تَقُلْ لَّهُمَاۤ اُفٍّ وَّ لَا تَنْهَرْهُمَا وَ قُلْ لَّهُمَا قَوْلًا كَرِیْمًا(۲۳) وَ اخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَ قُلْ رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّیٰنِیْ صَغِیْرًاؕ    (۲۴))    پ۱۵، بنی اسرآئیل:۲۳-۲۴(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और तुम्हारे रब ने ह़ुक्म फ़रमाया कि उस के सिवा किसी की इ़बादत न करो और मां-बाप के साथ अच्छा सुलूक करो । अगर तेरे सामने उन में से कोई एक या दोनों बुढ़ापे को पहुंच जाएं, तो उन से उफ़ तक न केहना और उन्हें न झिड़कना और उन से ख़ूबसूरत, नर्म बात केहना और उन के लिए नर्म दिली से आ़जिज़ी का बाज़ू झुका कर रख और दुआ़ कर कि ऐ मेरे रब ! तू इन दोनों पर रह़्म फ़रमा, जैसा इन दोनों ने मुझे बचपन में पाला ।

          ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इन आयाते मुबारका के तह़्त फ़रमाते हैं : (जब मां-बाप पर) ज़ोफ़ (कमज़ोरी) का ग़लबा हो, आज़ा में क़ुव्वत न रहे और जैसा तू बचपन में उन के पास बे त़ाक़त था, ऐसे ही वोह आख़िरे उ़म्र में तेरे पास नातुवां (कमज़ोर) रेह जाएं, (तो) ऐसा कोई कलिमा ज़बान से न निकालना जिस से येह समझा जाए कि उन की त़रफ़ से त़बीअ़त पर कुछ गिरानी (यानी बोझ) है । ह़ुस्ने अदब (निहायत अच्छे अदब) के साथ उन से ख़ित़ाब कर, मां-बाप को उन का नाम ले कर न पुकार कि येह ख़िलाफे़ अदब है और इस में उन की दिल आज़ारी है, मां-बाप से इस त़रह़ कलाम कर जैसे ग़ुलाम व ख़ादिम (अपने) आक़ा से करता है । (मां-बाप से) ब नर्मी व तवाज़ोअ़ (आ़जिज़ी व इन्केसारी से) पेश आ और उन के साथ थके वक़्त (बुढ़ापे) में शफ़्क़तो मह़ब्बत का बरताव कर कि उन्हों ने तेरी मजबूरी के वक़्त (बचपन में) तुझे मह़ब्बत से परवरिश किया था और जो चीज़ उन्हें दरकार (चाहिए) हो, वोह उन पर ख़र्च करने में दरेग़ (कन्जूसी) न कर । मुद्दआ़ (मुराद) येह है कि दुन्या में बेहतर सुलूक और ख़िदमत में कितना भी मुबालग़ा (इज़ाफ़ा) किया जाए लेकिन वालिदैन के एह़सान का ह़क़ अदा नहीं होता । इस लिए बन्दे को चाहिए कि बारगाहे इलाही में उन पर फ़ज़्लो रह़मत फ़रमाने की दुआ़ करे और अ़र्ज़ करे : या रब ! मेरी ख़िदमतें उन के एह़सान की जज़ा (बदला) नहीं हो सकतीं, तू उन पर करम कर कि उन के एह़सान का बदला हो । (तफ़्सीरे ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, पा. 15, बनी इसराईल, तह़्तुल आयत : 23, 24, स. 529, 530)