Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab
मुतअ़ल्लिक़ दिलचस्प ह़िकायात पर मुश्तमिल है । (2) "आदाबे त़आ़म" येह बाब खाने की सुन्नतों और आदाब के इ़लावा 99 सबक़ आमोज़ ह़िकायात पर मुश्तमिल है । (3) "पेट का क़ुफ़्ले मदीना" येह बाब ज़रूरत से ज़ियादा खाने के दीनी व दुन्यावी नुक़्सानात के बयान और पेट का क़ुफ़्ले मदीना लगाने की बरकतों से माला माल अह़ादीस व ह़िकायात पर मुश्तमिल है (अपने पेट को ह़राम ग़िज़ा से बचाना और ह़लाल ख़ूराक भी भूक से कम खाना पेट का क़ुफ़्ले मदीना लगाना है) । (4) "फै़ज़ाने रमज़ान" येह बाब रोज़ा, तरावीह़, ज़कात और ई़दुल फ़ित़्र के फ़ज़ाइल और कई मा'लूमाती मदनी फूलों का निहायत ही ख़ूब सूरत गुलदस्ता है । फै़ज़ाने सुन्नत (जिल्द अव्वल) दर्स देने वाली इस्लामी बहनों बल्कि तमाम मुसलमानों के लिये निहायत मुफ़ीद और इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का एक ज़रीआ़ है । लिहाज़ा आज ही इस किताब को हदिय्यतन त़लब कीजिये और वक़्तन फ़-वक़्तन इस का मुत़ालआ़ करती रहिये । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! अब तक इंगलिश के इ़लावा गुजराती, सिन्धी और बंगाली ज़बान में भी इस का तर्जमा किया जा चुका है ।
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ह़ज़रते सय्यिदुना हुदबा बिन ख़ालिद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के वाक़िए़ से मा'लूम हुवा ! हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن सुन्नतों पर अ़मल करने के मुआ़मले में दुन्या के बड़े से बड़े मालदार बल्कि बादशाह की भी परवा नहीं करते थे । इस ह़िकायत में उन इस्लामी बहनों के लिये भी नसीह़त के मदनी फूल मौजूद हैं जो दूसरों के त़ा'नों के डर से खाने, पीने की सुन्नतें और दीगर सुन्नतें छोड़ देती हैं । अल्लाह करीम हमें सरकारे मदीना, राह़ते क़ल्बो सीना صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की सुन्नतों पर अ़मल करने का जज़्बा नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ज़बरदस्त मुह़द्दिस और आ़लिमे दीन, ह़ज़रते सय्यिदुना हुदबा बिन ख़ालिद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने रिज़्क़ की क़द्र की, दस्तरख़ान पर गिरे हुवे टुक्ड़ों को चुन कर खाया, तो अल्लाह पाक ने रिज़्क़ की क़द्र करने की बरकत से उन्हें एक हज़ार दीनार शाही दरबार से दिलवा दिये और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मालदार हो गए । लिहाज़ा हमें भी चाहिये कि न सिर्फ़ रिज़्क़ की बल्कि अल्लाह पाक की तमाम ने'मतों की ख़ूब ख़ूब क़द्र किया करें और कभी किसी ने'मत की ना शुक्री न करें । याद रखिये ! ने'मतों की ना शुक्री करना बहुत बड़े नुक़्सान का सबब है । चुनान्चे,
रिज़्क़ की ना शुक्री, ज़वाले रिज़्क़ का सबब हो सकती है
"तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" जिल्द 3, सफ़ह़ा नम्बर 543 पर है : जब मुसलमान अल्लाह पाक की ना शुक्री करते, यादे ख़ुदा से ग़फ़्लत को अपना शिआ़र (या'नी त़रीक़ा) बना लेते और अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात की तक्मील (या'नी उन को पूरा करने) में मसरूफ़ हो जाते हैं और अपने बुरे आ'माल की कसरत की वज्ह से ख़ुद को अल्लाह पाक की ने'मतों का ना अहल साबित कर देते हैं, तो अल्लाह पाक उन से अपनी दी हुई ने'मतें वापस ले लेता है । (तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, 3 / 543)