Rizq Main Tangi Kay Asbab

Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab

اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! हम खाना तो खाते हैं मगर सैर नहीं होते ! सरकारे दो आ़लम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फ़रमाया :  तुम अलग अलग खाते होगे । अ़र्ज़ की : जी हां ! फ़रमाया : मिल बैठ कर खाना खाया करो और बिस्मिल्लाह पढ़ लिया करो, तुम्हारे लिये खाने में बरकत दी जाएगी । (ابوداود، کتاب الاطعمۃ، باب فی الاجتماع علی الطعام، ۳/۴۸۶ ،حدیث: ۳۷۶۴)

बुरे आ'माल भी तंगिये रिज़्क़ का सबब हैं

        प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हमें भी चाहिये कि मह़रमों के साथ मिल बैठ कर खाएं ताकि अल्लाह करीम बरकत अ़त़ा फ़रमाए । याद रखिये ! तंगिये रिज़्क़ का एक सबब गुनाह भी है । इस में कोई शक नहीं कि वक़्तन फ़-वक़्तन इन्सान को पेश आने वाली त़रह़ त़रह़ की मुसीबतों में से मोह़्ताजी और रिज़्क़ में बे बरकती का भी एक बड़ा सबब उस की अपनी ही बद आ'मालियां हैं । इन्सान जब अल्लाह पाक की ना फ़रमानियां करने पर उतर आता है और गुनाह पर गुनाह करने लगता है, तो मोह़्ताजी और इस के इ़लावा बहुत सी मुसीबतों का शिकार हो जाता है । चुनान्चे, पारह 25, सूरतुश्शूरा की आयत नम्बर 30 में अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :

وَ مَاۤ اَصَابَكُمْ مِّنْ مُّصِیْبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ اَیْدِیْكُمْ وَ یَعْفُوْا عَنْ كَثِیْرٍؕ(۳۰)(پ۲۵، الشوری:۳۰)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और तुम्हें जो मुसीबत पहुंची वोह तुम्हारे हाथों के कमाए हुवे आ'माल की वज्ह से है और बहुत कुछ तो वोह मुआ़फ़ फ़रमा देता है ।

          ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस आयते करीमा के तह़्त फ़रमाते हैं : (या'नी) दुन्या में जो तक्लीफे़ं और मुसीबतें मोमिनीन को पहुंचती हैं, अक्सर उन का सबब उन के गुनाह होते हैं, उन तक्लीफ़ों को अल्लाह पाक उन के गुनाहों का कफ़्फ़ारा कर देता है ।

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान कर्दा आयते मुबारका और उस की तफ़्सीर को सामने रखते हुवे हम अपना एह़तिसाब करें कि त़रह़ त़रह़ की मुसीबतों और रिज़्क़ में बे बरकतियों का सबब कहीं हमारी अपनी ही बद आ'मालियां तो नहीं ! क्यूंकि आज कल हमारे मुआ़शरे में गुनाहों का बाज़ार इस क़दर गर्म है कि اَلْاَمَانُ وَالْحَفِیْظ । बद क़िस्मती से लोगों की भारी अक्सरिय्यत बे अ़मली का शिकार है, न तो बन्दों के ह़ुक़ूक़ की अदाएगी का पास है और न ही अल्लाह पाक के ह़ुक़ूक़ का कोई एह़सास, नेकियां करना नफ़्स के लिये बेह़द दुशवार और गुनाह करना बहुत आसान हो चुका है, ज़रूरिय्यात व सहूलिय्यात ह़ासिल करने की ह़द से ज़ियादा कोशिश ने मुसलमानों की भारी ता'दाद को फ़िक्रे आख़िरत से बिल्कुल ग़ाफ़िल कर दिया है । गाली देना, इल्ज़ाम लगाना, बद गुमानी करना, ग़ीबत करना, चुग़ली करना, लोगों के ऐ़ब जानने की कोशिश में रहना, लोगों के ऐ़ब उछालना, झूट बोलना, झूटे वा'दे करना, किसी का माल नाह़क़ खाना, ख़ून बहाना, किसी को बिला इजाज़ते शरई़ तक्लीफ़ देना, क़र्ज़ दबा लेना, किसी की चीज़ वक़्ती त़ौर पर ले कर वापस न करना, मुसलमानों को बुरे अल्क़ाब से पुकारना, किसी की चीज़ उसे ना गवार गुज़रने के बा वुजूद बिला इजाज़त इस्ति'माल करना, चोरी करना, बदकारी करना, फ़िल्में ड्रामे देखना, गाने बाजे सुनना, सूद व रिशवत का लेन देन करना, मां-बाप की ना फ़रमानी करना और उन्हें सताना, अमानत में ख़ियानत करना, बद निगाही करना, औ़रतों का मर्दों की नक़्ल करना, बे पर्दगी, ग़ुरूर, तकब्बुर,