Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab
लो और अगर तुम तौबा करो, तो तुम्हारे लिये अपना अस्ल माल लेना जाइज़ है, न तुम किसी को नुक़्सान पहुंचाओ और न तुम्हें नुक़्सान हो ।
एक और मक़ाम पर इरशाद फ़रमाया :
اَلَّذِیْنَ یَاْكُلُوْنَ الرِّبٰوا لَا یَقُوْمُوْنَ اِلَّا كَمَا یَقُوْمُ الَّذِیْ یَتَخَبَّطُهُ الشَّیْطٰنُ مِنَ الْمَسِّؕ-ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْۤا اِنَّمَا الْبَیْعُ مِثْلُ الرِّبٰواۘ-وَ اَحَلَّ اللّٰهُ الْبَیْعَ وَ حَرَّمَ الرِّبٰواؕ (پ۳، البقرۃ:۲۷۵)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : जो लोग सूद खाते हैं, वोह क़ियामत के दिन न खड़े होंगे मगर उस शख़्स के खड़े होने की त़रह़ जिसे आसेब ने छू कर पागल बना दिया हो, येह सज़ा इस वज्ह से है कि उन्हों ने कहा : ख़रीदो फ़रोख़्त भी तो सूद ही की त़रह़ है ! ह़ालांकि अल्लाह ने ख़रीदो फ़रोख़्त को ह़लाल किया और सूद को ह़राम किया ।
आइये ! अब सूद की मज़म्मत पर मुश्तमिल 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनिये । चुनान्चे,
3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
1. इरशाद फ़रमाया : सूद का एक दिरहम जिस को जान कर कोई खाए, वोह छत्तीस मरतबा बदकारी करने से भी सख़्त है ।
(مسند امام احمد،مسند الانصار، ۸/۲۲۳، حدیث:۲۲۰۱۶)
2. इरशाद फ़रमाया : शबे मे'राज मेरा गुज़र एक क़ौम पर हुवा जिस के पेट घर की त़रह़ (बड़े बड़े) हैं, उन पेटों में सांप हैं जो बाहर से दिखाई देते हैं । मैं ने पूछा : ऐ जिब्राईल ! येह कौन लोग हैं ? अ़र्ज़ की : येह सूद ख़ोर हैं ।
(ابن ماجه،کتاب التجارات،باب التغلیظ فی الربا،۳/۷۲،حدیث:۲۲۷۳)
3. इरशाद फ़रमाया : सूद से (ब ज़ाहिर) अगर्चे माल ज़ियादा हो मगर नतीजा येह है कि माल कम होगा । (مسندامام احمد ،مسند عبدالله بن مسعود،۲/۵۰، حدیث:۳۷۵۴)
अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मनावी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़्त फ़रमाते हैं : सूद के ज़रीए़ माल में बड़ी तेज़ी से इज़ाफ़ा होता है मगर सूद लेने वाले शख़्स पर (माल की) तबाही व बरबादी के जो दरवाज़े खुलते हैं, उन की वज्ह से वोह माल कम होते होते बिल आख़िर ख़त्म हो जाता है ।
(فیض القدیر،۴/۶۶،تحت الحدیث:۴۵۰۵)
सूदी माल की हलाकत व तबाही के बारे में इरशादे बारी है :
یَمْحَقُ اللّٰهُ الرِّبٰوا وَ یُرْبِی الصَّدَقٰتِؕ (پ ۳،البقرة:۲۷۶)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : अल्लाह सूद को मिटाता है और सदक़ात को बढ़ाता है ।
ह़कीमुल उम्मत, मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : इस आयत से दो मस्अले मा'लूम हुवे । (1) एक येह कि मोमिन के लिये सूद में बरकत नहीं, येह गै़र मुस्लिम की ग़िज़ा हो सकती है, मोमिन की नहीं । लिहाज़ा अपने आप को ग़ैर मुस्लिमों पर क़ियास न करो, गै़र