Book Name:Rizq Main Tangi Kay Asbab
मुस्लिम सूद ले कर तरक़्क़ी करेगा, मोमिन ज़कात दे कर । (2) दूसरे येह कि सूद के पैसे से ज़कात, ख़ैरात क़बूल नहीं होते । (नूरुल इ़रफ़ान, पा. 3, अल बक़रह, तह़्तुल आयत : 276, मुल्तक़त़न)
8 मदनी कामों में से एक मदनी काम "घर दर्स"
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! अल्लाह करीम के प्यारे रसूल, रसूले मक़्बूल, बीबी आमिना के गुल्शन के महकते फूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ और उ़लमाए किराम के इन इरशादात के बा वुजूद भी अगर कोई सूद से बाज़ न आए और उसे अपनी मुआ़शी तरक़्क़ी का ज़रीआ़ समझे, तो येह अल्लाह पाक और उस के मदनी ह़बीब, ह़बीबे लबीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ना फ़रमानी होगी । यक़ीनन सूद और इस के इ़लावा दीगर नाजाइज़ ज़राएअ़ से ह़ासिल कर्दा ह़राम माल दुन्या व आख़िरत की तबाही का बाइ़स है । लिहाज़ा सूद और दीगर गुनाहों से पीछा छुड़ाने, नेकियों में दिल लगाने, मोह़्ताजी की आफ़त से बचने और दुन्या व आख़िरत की ढेरों भलाइयां पाने के लिये दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो कर ज़ैली ह़ल्के़ के 8 मदनी कामों में अपना ह़िस्सा मिलाइये । ज़ैली ह़ल्के़ के 8 मदनी कामों में से एक मदनी काम "घर दर्स" भी है । घर में मदनी माह़ोल बनाने के लिये रोज़ाना कम अज़ कम एक बार दर्से फै़ज़ाने सुन्नत देने या सुनने की तरकीब फ़रमाइये (जिस में ना मह़रम न हों) । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के तख़रीज शुदा रसाइल से भी ह़स्बे मौक़अ़ दर्स दिया जा सकता है । (दौरानिया : 7 मिनट है)
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ घर दर्स की बरकत से इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का सवाब मिलता है । इसी त़रह़ घर दर्स भी ज़ाहिरी व बात़िनी अख़्लाक़ संवारने और अच्छी तरबिय्यत का एक बेहतरीन ज़रीआ़ है । लिहाज़ा आप तमाम इस्लामी बहनें घर दर्स शुरूअ़ करने की निय्यत फ़रमा लीजिये और दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से हर दम वाबस्ता हो जाइये । आइये ! बत़ौरे तरग़ीब एक मदनी बहार सुनिये और झूमिये । चुनान्चे,
गुनाह को गुनाह समझने का शुऊ़र मिल गया
बाबुल मदीना की एक इस्लामी बहन नमाज़ें क़ज़ा कर डालने और बे पर्दगी जैसे गुनाहों में गिरिफ़्तार थीं । अफ़्सोस ! उन्हें गुनाह को गुनाह समझने का भी एह़सास न था । उन्हें दुन्यावी आसाइशें मुयस्सर होने के बा वुजूद क़ल्बी सुकून नसीब न था, वोह अ़जीब बेचैनी और घुटन का शिकार रहती थीं । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ उन्हें सुकूने क़ल्ब इस त़रह़ मिला कि चन्द इस्लामी बहनों की दा'वत पर उन्हें दा'वते इस्लामी के हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत की सआ़दत मिली, वहां बयान सुना, अपने रब्बे क़दीर का ज़िक्र किया और दुआ़ मांगी और रो रो कर अपने गुनाहों से तौबा की, तो उन्हें ऐसा मह़सूस हुवा गोया उन के दिल से कोई बोझ उतर गया है और उसे क़रार नसीब हो गया है । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इसी इजतिमाअ़ में शिर्कत की बरकत से वोह न सिर्फ़ मदनी माह़ोल से वाबस्ता हुईं बल्कि अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ से बैअ़त हो कर अ़त़्त़ारिया भी बन गईं । (मैं ने मदनी बुरक़अ़ क्यूं पहना ?, स. 19) (अगर आप को भी दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल के ज़रीए़ कोई मदनी बहार या बरकत मिली हो, तो आख़िर में ज़िम्मेदार इस्लामी बहन को जम्अ़ करवा दें) ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد