Ghous-e-Azam Ka Khandaan

Book Name:Ghous-e-Azam Ka Khandaan

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हमारा काम सिर्फ़ नेकी की दावत देना और बुराई से मन्अ़ करना है, मनवाना हमारा काम नहीं है, अलबत्ता अगर कहीं किसी ग़ैर शरई़ काम को रोकने की क़ुदरत (Power) है, तो उसे रोकना भी ज़रूरी होगा याद रहे ! नेकी की दावत के चन्द मरातिब हैं आइए ! उन मरातिब की कुछ तफ़्सील सुनती हैं चुनान्चे,

          ह़ुज्जतुल इस्लाम, ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ नेकी की दावत के मरातिब बयान करते हुवे फ़रमाते हैं : (1) किसी जाहिल को ह़क़ बात बताना, यानी जिसे शरई़ ह़ुक्म मालूम हो उस को शरई़ ह़ुक्म बताना (मसलन सूद का लेन देन करने वाली को येह बताना कि येह काम ह़राम है, लिहाज़ा आप को इस से ज़रूर बचना चाहिए वग़ैरा वग़ैरा) (2) नर्म गुफ़्तगू के ज़रीए़ वाज़ो नसीह़त करना (जैसे ग़ीबत करने वाली को समझाते हुवे नर्म लह्जे में केहना : प्यारी बहन ! ग़ीबत करना ह़राम और दोज़ख़ में ले जाने वाला काम है फिर आप क्यूं ग़ीबत के गुनाह में मुब्तला होती हैं ? बराहे करम ! ग़ीबत करने से बचिए और अपना येह ज़ेहन बनाइए कि ग़ीबत करेंगी, ग़ीबत सुनेंगी اِنْ شَآءَ اللّٰہ) (3) (नेकी की दावत देने का तीसरा दरजा येह है कि ख़िलाफे़ शरीअ़त काम करने वाली को) बुरा भला केहना और डांट डपट  करना बुरा भला केहने से मुराद यहां बे ह़याई वाले जुम्लों पर मुश्तमिल कलाम करना नहीं बल्कि (वालिदैन का अपनी औलाद को) इस त़रह़ केहना : " नादान ! ना समझ ! क्या तू अल्लाह पाक से नहीं डरती !" या इसी त़रह़ के दीगर अल्फ़ाज़ इस्तिमाल करना (इह़याउल उ़लूम, 2 / 1124, मुलख़्ख़सन)

          याद रखिए ! नेकी की दावत के बयान कर्दा मरातिब पर हर एक को अ़मल करना ज़रूरी नहीं बल्कि इस की चन्द सूरतें हैं चुनान्चे, मक्तबतुल मदीना की किताब "बहारे शरीअ़त" जिल्द 3, सफ़ह़ा नम्बर 615 पर लिखा है : اَمْر ٌ بِالْمَعْرُوْف وَ نَہْیٌ عَنِ الْمُنْکَر (यानी नेकी की दावत देने और बुराई से रोकने) की कई सूरतें हैं (1) अगर ग़ालिब गुमान येह है कि येह (नेकी की दावत देने वाला) उन से कहेगा, तो वोह इस की बात मान लेंगे और बुरी बात से बाज़ जाएंगे, तो اَمْر ٌبِالْمَعْرُوْف (यानी नेकी की दावत देना) वाजिब है, इस (नेकी की दावत देने वाले शख़्स) को बाज़ रेहना जाइज़ नहीं (2) अगर गुमाने ग़ालिब येह है कि वोह (जिन को नेकी की दावत देगा, तो वोह) त़रह़ त़रह़ की तोहमत बांधेंगे और गालियां देंगे, तो (फिर नेकी की दावत) तर्क करना (यानी छोड़ देना) अफ़्ज़ल है (3) अगर येह मालूम है कि वोह इसे मारेंगे और येह सब्र कर सकेगा या इस की वज्ह से फ़ितना फ़साद पैदा होगा, आपस में लड़ाई ठन जाएगी, जब भी छोड़ना अफ़्ज़ल है (4) अगर मालूम हो कि वोह (लोग जिन्हें नेकी की दावत दी जाएगी) अगर इसे मारेंगे तो सब्र कर लेगा, तो उन लोगों को बुरे काम से मन्अ़ करे (5) अगर मालूम है कि वोह मानेंगे नहीं मगर मारेंगे और गालियां देंगे, तो इसे इख़्तियार है और अफ़्ज़ल येह है कि अम्र करे (यानी नेकी की दावत दे और बुराई से मन्अ़ करे)