Ghous-e-Azam Ka Khandaan

Book Name:Ghous-e-Azam Ka Khandaan

वालिद और वालिदा (Parents) رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْھِمَا का तक़्वा, ग़ौसे पाक के नानाजान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के ह़ालात, ग़ौसे पाक की फूफीजान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا की करामत और इस के इ़लावा बहुत सारी इ़ल्मी बातें सुनेंगी

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! सरकारे बग़दाद, ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ निहायत आ़लीशान घराने में पैदा हुवे, ग़ौसे पाक का ख़ानदान ज़ोह्दो तक़्वा की वज्ह से बहुत मश्हूर था ग़ौसे पाक की वालिदा का नाम "फ़ात़िमा बिन्ते शैख़ अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْھِمَا" वालिदा की कुन्यत "उम्मुल ख़ैर" जब कि लक़ब "अमतुल जब्बार" था (सीरते ग़ौसे आज़म, . 27, मुलख़्ख़सन)

          ग़ौसे पाक के वालिदे गिरामी का नामे मुबारक "सय्यिद मूसा" कुन्यत "अबू सालेह़" जब कि लक़ब "जंगी दोस्त" है ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक वालिद की निस्बत से ह़सनी (और वालिदए माजिदा की त़रफ़ से ह़ुसैनी सय्यिद) हैं ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के वालिदे गिरामी, ह़ज़रते अबू सालेह़ मूसा जंगी दोस्त अपने वक़्त के मश्हूरे ज़माना औलियाए किराम में से थे (ग़ौसे पाक के ह़ालात, . 15, 16, मुलख़्ख़सन)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइए ! अब ह़ुज़ूरे ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के वालिदैन के तक़्वा परहेज़गारी के तअ़ल्लुक़ से एक दिलचस्प और ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुनती हैं और उस से ह़ासिल होने वाली मालूमात को सुन कर अपने दिल के मदनी गुलदस्ते में सजाने की कोशिश करती हैं चुनान्चे,

वालिदैने ग़ौसे पाक का तक़्वा

          मन्क़ूल है : ह़ज़रते सय्यिदुना अबू सालेह़ मूसा जंगी दोस्त رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ दरया के किनारे बैठे थे कि एक सेब (Apple) बेहता हुवा आया, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने उसे खा लिया सेब खाने के बाद ग़ौसे पाक के वालिदे गिरामी पर ख़ौफे़ ख़ुदा का ग़लबा हुवा और आप इस त़रह़ ग़ौरो फ़िक्र (यानी अपना मुह़ासबा) करने लगे कि जाने येह सेब किस का था ? और क्या इस त़रह़  ना मालूम सेब खाना मेरे लिए ह़लाल हो सकता है ? येह ख़याल पैदा होते ही आप अपना क़ुसूर मुआ़फ़ करवाने के लिए सेब के मालिक की तलाश में दरया के किनारे चल दिए एक लम्बा सफ़र करने के बाद ह़ज़रते अबू सालेह़ मूसा जंगी दोस्त رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को दरया के क़रीब एक निहायत अ़ज़ीमुश्शान इ़मारत नज़र आई जिस में सेब का एक बहुत बड़ा दरख़्त मौजूद था और उस की शाख़ों पर पके हुवे सेब लगे हुवे थे बाज़ सेबों से भरी शाख़ें पानी के ऊपर फैली हुई थीं, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को यक़ीन हो गया कि जो सेब मैं ने खाया था वोह इसी दरख़्त का है चुनान्चे, ग़ौसे पाक के वालिदे गिरामी ने लोगों से उस दरख़्त के मालिक के बारे में पूछा, तो पता चला कि उस बाग़ के मालिक तो अपने ज़माने के मश्हूर बुज़ुर्ग, ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ हैं