Book Name:Ghous-e-Azam Ka Khandaan
हमारे मुआ़शरे में आ़म त़ौर पर येह आख़िरी सूरत कसरत से पाई जाती है (यानी मालूम है कि वोह मानेंगी नहीं मगर न मारेंगी और न गालियां देंगी), इस पर अ़मल कर के सवाब कमाना चाहिए । मज़ीद इस का फ़ाइदा येह भी होगा कि जब बुराई के ख़िलाफ़ बोलने वालियां बढ़ेंगी, तो बुराइयां ख़त्म होना शुरूअ़ हो जाएंगी और हर घर अमन का गेहवारा बनना शुरूअ़ हो जाएगा, हर त़रफ़ सुन्नतों की बहारें आ जाएंगी, नफ़रतों की दीवारें मह़ब्बतों की फ़ज़ाओं में तब्दील होना शुरूअ़ हो जाएंगी, कई कई सालों से बिछड़े हुवे ख़ानदान आपस में मिल जाएंगे, रूठी हुई मान जाएंगी, सह़ाबाओ अहले बैत رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُمْ اَجْمَعِیْن के मुबारक दौर की यादें ताज़ा हो जाएंगी । اِنْ شَآءَ اللّٰہ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
वालिदए मोह़तरमा के औसाफ़
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हम ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के वालिदे मोह़तरम رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की सीरते मुबारका के बारे में सुन रही थीं । आइए ! अब ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक की वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا के बारे में भी कुछ सुनती हैं । याद रहे ! ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की वालिदए माजिदा, उम्मुल ख़ैर, ह़ज़रते फ़ात़िमा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا (अपने) वक़्त की इन्तिहाई नेक सीरत ख़ातून और तक़्वा व परहेज़गारी की पैकर थीं । (सीरते ग़ौसे आज़म, स. 51, मुलख़्ख़सन)
ह़ज़रते उम्मुल ख़ैर दीगर बहुत सी बेहतरीन ख़ूबियों से भी आरास्ता थीं मगर आप की ज़ात में एक ख़ास (Special) बात येह भी थी कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا तिलावते क़ुरआन की बहुत शैदाई थीं और इस क़दर कसरत से तिलावते क़ुरआन करना आप का मामूल बन चुका था कि मह़बूबे रह़मानी, क़िन्दीले नूरानी, शहबाज़े ला मकानी, सय्यिद शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا के पेट शरीफ़ में रेह कर पूरे अठ्ठारह पारे याद कर लिए थे । चुनान्चे,
18 पारे सुना दिए
शहनशाहे बग़दाद, ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ पांच साल की उ़म्र में पेहली बार "बिस्मिल्लाह" पढ़ने की रस्म के लिए किसी बुज़ुर्ग के पास बैठे, اَعُوْذُبِاللہِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْم और بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ पढ़ी फिर सूरए फ़ातिह़ा और الٓمٓ से ले कर 18 पारे सुना दिए । उन बुज़ुर्ग ने कहा : बेटे और पढ़िए ! कहा : बस मुझे इतना ही याद है क्यूंकि मेरी मां को भी इतना ही याद था । जब मैं अपनी मां के पेट में था, उस वक़्त वोह पढ़ा करती थीं, मैं ने सुन कर याद कर लिया था । (रिसाला : मुन्ने की लाश, स. 4, मुलख़्ख़सन)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हमें ग़ौर करना चाहिए कि क्या हमें देख कर क़ुरआने पाक पढ़ना आता है ? नमाज़ में की जाने वाली तिलावत और पढ़ी जाने वाली तस्बीह़ात व अज़्कार क्या हम दुरुस्त त़रीके़ से पढ़ती हैं ? इस की दुरुस्ती के लिए हम ने कोई इन्तिज़ाम किया ? (मसलन मद्रसतुल मदीना बालिग़ात या ब ज़रीआ़ इन्टरनेट Online क़ुरआने करीम