Book Name:Ghous-e-Azam Ka Khandaan
ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के नानाजान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का तआ़रुफ़
याद रहे ! अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ जीलान शरीफ़ के मश्हूर बुज़ुर्गों में से थे जो निहायत परहेज़गार और कमाल वाले वली थे । जैसा कि :
ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का मक़ामो मर्तबा
ह़ज़रते अ़ल्लामा शैख़ अबू मुह़म्मद अद्दारबानी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की दुआ़एं बहुत जल्द क़बूल हो जाती थीं, आप का मक़ामो मर्तबा बारगाहे इलाही में इतना बुलन्दो बाला था कि अगर आप किसी शख़्स से (किसी शरई़ वज्ह के सबब कभी) नाराज़ हो जाते, तो अल्लाह करीम उस शख़्स से बदला लेता और जिस से आप ख़ुश हो जाते, तो अल्लाह पाक उस को इनआ़मो इकराम से नवाज़ देता । ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ का जज़्बा जवानों से ज़ियादा जोश से भरपूर था, जिस्मानी कमज़ोरी के बा वुजूद भी आप कसरत से नवाफ़िल अदा फ़रमाते और ज़िक्रो अज़्कार में मश्ग़ूल रेहते थे । अल्लाह पाक की अ़त़ा से और नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के वसीले से ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ अक्सर ग़ैब की ख़बरें बता दिया करते थे और जैसा आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने फ़रमाया होता, ह़क़ीक़त में भी वैसा ही हो जाया करता था, बिला शुबा येह आप की एक शानदार करामत थी । (بہجۃ الاسرار ، ذکر نسبہ وصفتہ ، ص۱۷۲ملخصا)
बहर ह़ाल जब ह़ज़रते अबू सालेह़ मूसा जंगी दोस्त رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को बाग़ के मालिक ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के बारे में इ़ल्म हो गया, तो आप बिग़ैर किसी ताख़ीर के उन की ख़िदमत में ह़ाज़िर हो गए और सारा मुआ़मला अ़र्ज़ करने के बाद उन से मुआ़फ़ी चाही । ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ चूंकि विलायत के बुलन्द तरीन मर्तबे पर फ़ाइज़ थे, लिहाज़ा आप भांप गए कि येह शख़्स अल्लाह करीम के मक़्बूल बन्दों में से एक बन्दा है, जभी तो अपना क़ुसूर मुआ़फ़ करवाने की ख़ात़िर इतना लम्बा सफ़र कर के यहां तक आया है । चुनान्चे, बाग़ के मालिक ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ ने ह़ज़रते मूसा जंगी दोस्त की बात सुन कर फ़रमाया : 12 साल तक हमारी ख़िदमत करोगे तब ही मुआ़फ़ी मिलेगी । क़ुरबान जाइए ग़ौसे पाक के वालिदे गिरामी, ह़ज़रते अबू सालेह़ पर ! जिन्हों ने बिग़ैर किसी बह़्सो तकरार के इस शर्त़ को ख़ुशी ख़ुशी मन्ज़ूर फ़रमा लिया, अगर्चे शरअ़न इस त़रह़ क़ुसूर मुआ़फ़ करवाना आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ पर लाज़िम न था । बहर ह़ाल 12 साल तक ह़ज़रते अबू सालेह़ ख़िदमत करते रहे, जब 12 साल पूरे हो गए, तो अगला इम्तिह़ान (Next Trial) आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ का इस्तिक़्बाल करने के लिए तय्यार था और इस दफ़्अ़ का इम्तिह़ान शायद पिछले इम्तिह़ान से ज़ियादा अ़जीब और सख़्त भी था, वोह येह कि वलिय्ये कामिल, ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने ह़ज़रते अबू सालेह़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ से फ़रमाया : एक ख़िदमत और भी है और वोह येह कि मेरी एक लड़की है जिस में चार ऐ़ब हैं : (1) आंखों से अन्धी है । (2) कानों से बेहरी है । (3) हाथों से माज़ूर है