Book Name:Ghous-e-Azam Ka Khandaan
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! अब ज़रा हम भी ग़ौर करें ! क्या हमारे अन्दर भी येह ख़ूबियां पाई जाती हैं ? क्या हम भी बन्दों के ह़ुक़ूक़ पूरे त़ौर पर अदा करती हैं ? क्या हमारे दिल भी ख़ौफे़ ख़ुदा से सरशार हैं ? क्या हम भी अपने आमाल का ह़िसाब किताब करती हैं ? क्या हम भी अपने क़ुसूर मुआ़फ़ करवाने के लिए कोशिशें करती हैं ? अफ़्सोस ! आज कल तो क़र्ज़ के नाम पर लोगों के हज़ारों बल्कि लाखों रुपये हड़प कर लिए जाते हैं, ह़ालांकि येह ज़ालिम व नादान लोग अपनी दुन्या व आख़िरत को तबाहो बरबाद कर रहे हैं । जी हां ! कभी तो जीते जी दुन्या में ही ऐसे ज़ालिम लोग दूसरों के लिए निशाने इ़ब्रत बन जाते हैं या कभी कुत्ते की मौत मारे जाते हैं मगर येह ज़ुल्मो ज़ियादती का कितना बुरा नशा लगा हुवा है कि इस से इ़ब्रत ह़ासिल नहीं करते ।
)2(...पेहले की ख़वातीन में अजनबी मर्दों से शरई़ पर्दा करने का मदनी जज़्बा कूट कूट कर भरा हुवा था । जैसा कि सरकारे बग़दाद, ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की वालिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا के बारे में हम ने सुना, येही वज्ह है कि उन की नस्लों में औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن पैदा हुवा करते थे ।
अल्लाह करीम ने औ़रतों को अपने घरों में ठेहरी रेहने का ह़ुक्म और शरई़ ज़रूरत व ह़ाजत के बिग़ैर अपने घरों से निकलने से मन्अ़ फ़रमाया है । चुनान्चे, पारह 22, सूरतुल अह़ज़ाब की आयत नम्बर 33 में फ़रमाया गया :
(پ۲۲ ، الاحزاب : ۳۳) وَ قَرْنَ فِیْ بُیُوْتِكُنَّ وَ لَا تَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ الْجَاهِلِیَّةِ الْاُوْلٰى
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अपने घरों में ठेहरी रहो और बे पर्दा न रहो जैसे पेहली जाहिलिय्यत की बे पर्दगी ।
तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान, जिल्द 8, सफ़ह़ा नम्बर 21 पर इस आयते मुबारका के तह़त लिखा है : यानी जिस त़रह़ पेहली जाहिलिय्यत की औ़रतें बे पर्दा रहा करती थीं, इस त़रह़ तुम बे पर्दगी का मुज़ाहरा न करो । अगली और पिछली जाहिलिय्यत के ज़माने से मुतअ़ल्लिक़ मुफ़स्सिरीन के मुख़्तलिफ़ अक़्वाल हैं, उन में से एक क़ौल येह है कि अगली जाहिलिय्यत से मुराद इस्लाम से पेहले का ज़माना है, उस ज़माने में औ़रतें इतराती हुई निकलती और अपनी ज़ीनत और मह़ासिन का इज़्हार करती थीं ताकि ग़ैर मर्द उन्हें देखें, लिबास ऐसे पेहनती थीं जिन से जिस्म के आज़ा अच्छी त़रह़ न ढकें और पिछली जाहिलिय्यत से आख़िरी ज़माना मुराद है जिस में लोगों के अफ़्आ़ल (काम) पेहलों की मिस्ल हो जाएंगे । (خازن ، الاحزاب ، تحت الآیۃ : ۳۳ ، ۳ / ۴۹۹ ، جلالین ، الاحزاب ، تحت الآیۃ : ۳۳ ، ص۳۵۴ ، ملتقطا)
)3(...जो मां-बाप अल्लाह पाक से डरने वाले, परहेज़गार, इ़बादात करने वाले, शर्मो ह़या के पैकर और मदनी रंग में रंगे हुवे होते हैं, तो येही ख़ुसूसिय्यात उन की औलाद में भी मुन्तक़िल हो जाती हैं और अल्लाह करीम ऐसों की नस्लों को भी संवार देता है । जैसा कि :