Book Name:Jannat Ki Baharain
कहा जाएगा कि क़ुरआन पढ़ते जाओ और जन्नत में अपने बुलन्द मरातिब बढ़ाते जाओ, इस लिये हमें भी ज़ियादा से ज़ियादा क़ुरआने पाक की तिलावत करने की कोशिश करनी चाहिये और इस पुर फ़ितन दौर में अपने बच्चों की दीनी और अख़्लाक़ी तरबिय्यत के लिये उन्हें मदारिसुल मदीना और जामिआतुल मदीना में दाख़िल करवा देना चाहिये क्यूंकि फ़ी ज़माना बुराइयों में सब से बड़ी बुराई जहालत है जो मुआशरे की दीगर बुराइयों में सरे फे़हरिस्त है । घर बार का मुआमला हो या कारोबार का, दोस्त अह़बाब का हो या रिश्तेदार का, निकाह़ का हो या औलाद की अच्छी तरबिय्यत का, ग़रज़ ! क्या ह़ुक़ूक़ुल्लाह और क्या ह़ुक़ूक़ुल इ़बाद, ज़िन्दगी के हर शो'बे में जहां भी जिस अन्दाज़ से भी ख़राबियां पाई जा रही हैं, अगर हम सन्जीदगी से ग़ौर करें, तो येह बात हम पर आश्कार हो जाएगी कि इस का बुन्यादी और सब से नुमायां सबब इ़ल्मे दीन से दूरी है । इ़ल्मे दीन के फ़ुक़्दान और दुरुस्त रहनुमाई से मह़रूमी के बाइ़स न सिर्फ़ मुआमलात व अख़्लाक़िय्यात में बल्कि अ़क़ाइद व इ़बादात तक में त़रह़ त़रह़ की बुराइयां और ख़राबियां निहायत तेज़ी के साथ बढ़ती जा रही हैं, जिन के सद्दे बाब के लिये मह़ज़ इ़ल्मे दीन ह़ासिल कर लेना ही काफ़ी नहीं बल्कि अपने इ़ल्म पर अ़मल करना और इस के ज़रीए़ दूसरों की इस्लाह़ की कोशिश करना भी ज़रूरी है । येही वज्ह है कि शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने अपने मुरीदीन, मुह़िब्बीन और मुतअ़ल्लिक़ीन को अपनी और दूसरों की इस्लाह़ की कोशिश में मगन रहने का मदनी ज़ेहन देते हुवे उन्हें येह मदनी मक़्सद अ़त़ा फ़रमाया है "मुझे अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करनी है, اِنْ شَآءَ اللہ عَزَّ وَجَلَّ ।"
मजलिसे जामिअ़तुल मदीना का तआरुफ़
اَلْحَمْدُلِلّٰہ عَزَّوَجَلَّ ! इसी मदनी मक़्सद के तह़त दा'वते इस्लामी कमो बेश 104 शो'बाजात में सुन्नतों की ख़िदमत में मसरूफ़े अ़मल है, इन्ही में से एक शो'बा "जामिअ़तुल मदीना" भी है । शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ