Book Name:Jannat Ki Baharain
ह़ुज़ूर नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक नेक आ'माल के त़ुफै़ल दुन्या भी अ़त़ा कर देता है मगर आ'माले दुन्यवी के साथ आख़िरत अ़त़ा नहीं करता ।
(अज़ मिन्हाजुल आबिदीन, स. 457, الزھد لابن مبارک،باب ھوان الدنیا علی اللہ،ص۱۹۳،حدیث:۵۴۹،بتغیر قلیل)
लिहाज़ा अपनी आक़िबत को बेहतर बनाने की कोशिश कीजिये, اِنْ شَآءَ اللہ عَزَّ وَجَلَّ इस की बरकत से दुन्या भी अच्छी होगी, आख़िरत भी संवर जाएगी और जन्नत की ला ज़वाल ने'मतें भी नसीब होंगी ।
हम ने माना कि गुनाहों की नहीं ह़द लेकिन
तू है उन का तो ह़सन, तेरी है जन्नत तेरी
(ज़ौके़ ना'त, स. 156)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! यक़ीनन दुन्या की मह़ब्बत और मालो ज़र की ख़्वाहिश से बच कर जन्नत पाने के लिये अ़मल करना इन्तिहाई दुशवार मर्ह़ला है लेकिन अगर हम आख़िरत में मिलने वाली आसानियों, शादमानियों और आसाइशों पर नज़र रखेंगे, तो यक़ीनन हमारे लिये अ़मल करना आसान होगा । इस को यूं समझिये कि अगर हमारे सामने 100 रुपये और एक लाख रुपये रखे जाएं और इन में से एक को लेने का इख़्तियार दिया जाए, तो यक़ीनन हम में से हर शख़्स एक लाख रुपये पर ही नज़र रखेगा और एक लाख रुपये ही लेना चाहेगा, 100 रुपये की त़रफ़ कोई भी अ़क़्लमन्द नज़र उठा कर भी नहीं देखेगा । बिल्कुल इसी त़रह़ दुन्या व माफ़ीहा (या'नी दुन्या और जो कुछ इस में है) उस की मिसाल 100 रुपये के नोट जैसी है जब कि आख़िरत में मिलने वाले फ़ाइदे और जन्नत में मिलने वाली ने'मतें तो ऐसी हैं जिन का कोई मोल ही नहीं क्यूंकि दुन्या की आरज़ी ने'मतों का जन्नत की हमेशा रहने वाली ने'मतों से कोई मुक़ाबला ही नहीं । इस लिये इस दुन्या की फ़िक्र छोड़िये और आख़िरत कमाने, नेकियों में दिल लगाने और जन्नत पाने की कोशिश कीजिये ।